श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
भक्तियोग
अध्याय 12 : श्लोक-20
ये तु धर्मामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते।
इस अथवा में दूसरे श्लोक से अंतिम श्लोक तक-मय्यावेश्य मनो ये माम्[2] से लेकर ये तु धर्मामृतम् इदम्[3] तक भगवान ने अपने पास तक पहुँचने की दिव्य सेवा की विधियों की व्याख्या की है। ऐसी विधियाँ उन्हें अत्यन्त प्रिय हैं, और इनमें लगे हुए व्यक्तियों को वे स्वीकार कर लेते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ये=जो; तु=लेकिन; धर्म=धर्म रूप; अमृतम्;=अमृत को; इदम्;=इस; यथा=जिस तरह से, जैसा, उक्तम्=कहा गया; पर्युपासते=पूर्णतया तत्पर रहते हैं; श्रद्दधाना:=श्रद्धा के साथ; मत्-परमा:=मुझ परमेश्वर को सब कुछ मानते हुए; भक्ता:=भक्तजन; ते-वे; अतीव=अत्यधिक; मे=मेरे प्रिया:=प्रिय।
- ↑ मुझ पर मन को स्थिर करके
- ↑ नित्य सेवा इस धर्म को
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