श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 26

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
अध्याय-1 : श्लोक-32-35

भौतिक जीवन का यह सामान्य लेखा जोखा है। किन्तु आध्यात्मिक जीवन इससे सर्वथा भिन्न होता है। चूँकि भक्त भगवान कि इच्छाओं की पूर्ति करना चाहता है, अतः भगवद्-इच्छा होने पर वह भगवान् की सेवा के लिए सारे एश्वर्य स्वीकार कर सकता है, किन्तु यदि भगवद्-इच्छा न हो तो वह एक पैसा भी ग्रहण नहीं करता। अर्जुन अपने सम्बन्धियों को मारना नहीं चाह रहा था, और यदि उनको मारने की आवश्यकता हो तो अर्जुन की इच्छा थी कि कृष्ण स्वयं उनका वध करें। इस समय उसे पता नहीं है कि कृष्ण उन सबों को युद्धभूमि में आने के पूर्व ही मार चुके हैं और अब उसे निमित्त मात्र बनना है। इसका उद्घाटन अगले अध्यायों में होगा। भगवान् का असली भक्त होने के कारण अर्जुन अपने अत्याचारी बन्धु-बान्धवों से प्रतिशोध नहीं लेना चाहता था, किन्तु यह तो भगवान् की योजना थी कि सबका वध हो। भगवद्भक्त दुष्टों से प्रतिशोध नहीं लेना चाहते किन्तु भगवान दुष्टों द्वारा भक्त के उत्पीड़न को सहन नहीं कर पाते। भगवान् किसी व्यक्ति को अपनी इच्छा से क्षमा कर सकते हैं, किन्तु यदि कोई उनके भक्तों को हानि पहुँचाता है तो वे क्षमा नहीं करते। इसीलिए भगवान् इन दुराचारियों का वध करने के लिए उद्यत थे यद्यपि उन्हें क्षमा करना चाहता था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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