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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
7.भगवान का ज्ञानावतार (कपिलावतार)
आगे वर्णन आता है, स्वायभुव मनु और शतरूपा का विवाह हुआ और फिर उनके दो पुत्र और तीन पुत्रियाँ हुई। दो पुत्र थे, उत्तानपाद और प्रियव्रत, (उनकी कथा चतुर्थ स्कन्ध में आएगी) और तीन पुत्रियाँ थीं देवहूति, आकूति और प्रसूति। देवहूति का विवाह कर्दम ऋषि के साथ हुआ। इनकी कथा भी आगे आती है। ऐसा कहा जाता है कि कर्दम ऋषि महान तपस्वी थे, महान योगी थे। ब्रह्माजी ने उनसे कहा कि तुम प्रजा उत्पन्न करो। ब्रह्माजी को यही चिन्ता रहती थी कि अच्छी प्रजा होनी चाहिए। बेकार में अयोग्य बच्चे पैदा करने से क्या फायदा है? अब इसके लिए कर्दम ऋषि तप करने चले गये। इधर देवहूति ने भी कर्दम ऋषि की तारीफ सुनी कि वे बड़े महान् ऋषि हैं। केवल तारीफ सुनकर ही देवहूति के मन में इच्छा इुई कि वे मुझे पति रूप मे मिलने चाहिए। इधर कर्दम ऋषि जब तप करने बैठे, तब उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर नारायण भगवान उनके समझ प्रकट हो गए। तब वे नारायण भगवान से कहते हैं- आप तो कल्पवृक्ष हैं। आपके पास आकर जो जिस चीज को माँग लेता है, वह उसे मिल जाती है। मैं कैसा मूढ़ हूँ कि आपसे मोक्ष भी प्राप्त कर सकता हूँ, लेकिन में विवाह की इच्छा करता हूँ। यह भी कोई बात हुई, लेकिन न जाने क्यों यह ऐसा ही है। भगवान ने कहा, ‘‘यह तुम्हारी अपनी बात नहीं है। तुम्हारे मन की बात को, संकल्प को, मैं जानता हूँ। स्वायंभूव मनु राजा हैं, चक्रवर्ती सम्राट् हैं। वे अपनी कन्या देवहूति को लेकर तुम्हारे पास आएँगे। देवहूति भी तुमको चाहती है। उस समय अपने को हीन मत समझना। ऐसा नहीं सोचना कि यह तो बहुत बड़ा चक्रवर्ती राजा है, अपनी कन्या को लेकर मेरे पास आया है, लेकिन मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। ऐसे अपने आप को छोटा मन समझना। वे जब यहाँ आकर अपनी पुत्री के विवाह का प्रस्ताव रखें, तो उसे स्वीकार कर लेना। फिर मैं तुम्हारा पुत्र बनकर आऊँगा क्योंकि मैं देख रहा हूँ कि इस समय सांख्ययोग-ज्ञानयोग सब नष्ट होता जा रहा है, इसलिए मैं तुम्हारा पुत्र बनकर आऊँगा! उसके बाद तुम संन्यास लेकर चले जाना। फिर मैं इस ज्ञान का उपदेश अपनी माँ को करूँगा। पुनः ज्ञान की स्थापना होगी।’’ यह भगवान का ज्ञानावतार है, जबकि वराह अवतार कर्मावतार है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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