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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
5.राजा निमि तथा नौ योगीश्वरों का संवाद
तब वे वसुदेव जी से कहते हैं, ‘‘तुम ने बहुत अच्छा प्रश्न पूछा है। इसलिए कि यह प्रश्न भागवत धर्म के विषय में है। इसी से सारे विश्व का धारण होता है। मनुष्य का कल्याण होता है।’’ फिर कहा- वसुदेव जी, ऋषियों ने इस संदर्भ में एक एतिहासिक कथा कही है। ऐसा ही प्रश्न पहले पूछा गया था। अच्छा? किसने, कहाँ, कब पूछा था? देखो, आगे बढने से पूर्व, जरा हम भी पूर्व-पूर्व की बातों को स्मरण कर लेते हैं। ऋषभ देव का अवतार आपको याद होगा। ऋषभ देव जो मुँह में पत्थर डाल कर राज्य से चले गये थे, उन्होंने अपने बच्चों को सब के सामने विशेष शिक्षा दी थी। उनके सौ पुत्र थे, जिनमें सबसे थे बड़े राजा भरत। उसी प्रसंग में उसके बाद उनके शेष पुत्रों में से जो नौ पुत्र महाभागवत हुए उन नौ यौगियों के नाम गिनाए थे[1] और यह भी कहा गया था कि इनकी कथा आगे एकादश स्कन्ध में आने वाली है। उन्हीं नौ योगियों की जो कथा है, उसे यहाँ प्रस्तुत प्रसंग में नारद जी वसुदेव जी को सुना रहे हैं। कहते हैं कि मिथिला के राजा निमि एक बार बहुत बड़ा यज्ञ करा रहे थे। उसी समय, उनकी सभा में ये नौ योगी पदार्पण करते हैं। वे बडे़ तेजस्वी व सिद्ध थे। सदा अपने स्वरूप में स्थित रहने वाले मुक्त पुरुष थे। वे सब यत्र-तत्र स्वच्छन्द रूप से विचरण करते रहते थे। एक बार वे सब स्वतः ही अनायास राजा निमि के यज्ञ में पहुँच गये। देखो, राजा निमि पर कितना बड़ा अनुग्रह है उनका। उनके दर्शन पाते ही विदेहराज निमि उठकर उनका स्वागत करते हैं। कहते हैं-
आप तो साक्षात भगवान के पार्षद हैं। सबका कल्याण करने के लिए ही आप इस जगत मे विचरण करते रहते हैं। आज मेरा भी कल्याण करने के लिए आप यहाँ पधारे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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