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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
2.प्रियव्रत के वंश का वर्णन
प्रियव्रत के जाने के बाद आग्नीध्र राजा बना। आग्नीध्र के नौ पुत्र हुए नाभि, किम्मुरुष, हरिवर्ष, इलावृत, रम्यक, हिरण्मय, कुरु, भद्राश्व और केतुमाल। उन नौ लड़कों में सबसे पहला था नाभि। ये जो नौ पुत्र हैं उन्हीं के नाम से नौ वर्ष कहे गए हैं। वर्ष अर्थात् स्थान। इस स्कन्ध में ‘स्थान’ का वर्णन किया गया है। तो सर्ग, विसर्ग के पश्चात् आता है ‘स्थान’। माने, जितना भूगोल-खगोलादि है, विभिन्न ब्रह्माण्डों में जितने लोग हैं वे सब भगवान् में ही स्थित हैं। भगवान् ही उनके अधिष्ठान हैं। यही बात यहाँ पर बताने वाले हैं। आग्नीध्र का ज्येष्ठ पुत्र हुआ नाभि। नाभि का चरित्र बड़ा ऊँचा था। उनका विवाह मेरुदेवी से हुआ। नाभि की इच्छा थी कि भगवान् को ही पुत्र रूप में प्राप्त करें। उन्होंने यज्ञ किया। यज्ञपुरुष प्रसन्न हुए। सारे पुरोहित आदि उनको नमस्कार करते हैं और कहते हैं - महाराज आप प्रसन्न हों! हमें तो यही बताया गया है कि बड़े जब आते हैं तो उन्हें ‘नमो-नमो’ कह देना। हमें और कुछ तो आता नहीं है। इसलिए हम आपको नमन करते हैं। आपको नमस्कार है। हमारे यजमान पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं। उन्हें आपके जैसा पुत्र चाहिए। भगवान् ने कहा - तुमने जो माँगा है वह बड़ी कठिन बात है। क्योंकि मेरे जैसा तो कोई है नहीं। लेकिन तुम ब्राह्मणों के मुख से कोई बात निकलती है तो उसे पूरा भी होना चाहिए। अतः अब मैं स्वयं इनका पुत्र बनकर आऊँगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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