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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
25.वर्णाश्रम-धर्म
इसके आगे वर्ण-धर्म तथा आश्रम धर्म (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास-धर्म) बताए गए हैं। युधिष्ठिर तथा नारद जी के संवाद रूप में इन्हें हम पहले भी देख चुके हैं। यहाँ गृहस्थाश्रम के सन्दर्भ में एक विशेष बात बतायी गयी है।
चलते समय दृष्टि आगे होनी चाहिए। खतरे के अभाव का निश्चय होने पर ही कदम बढ़ाना चाहिए। पानी को छानकर पीना चाहिए। वाणी ऐसी हो जो सत्य से पवित्र की गई हो। अर्थात जो बोला जाए वह सत्य ही होना चाहिए। और मन से जिस कार्य को करने का निर्णय कर लिया हो, उसका आचरण तभी करना चाहिए जब वह पवित्र हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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