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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
8.गर्भ में परीक्षित की रक्षा
इसके बाद जिन प्रसंगों का वर्णन है उनका प्रयोजन केवल परीक्षित राजा के जन्म की संगति बैठाने में हैं। इसलिये यहाँ उनके विस्तार की आवश्यकता नहीं है। महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया। राजा युधिष्ठिर राज्य करने लगे। उनके एक भाई अर्जुन का पुत्र था अभिमन्यु। उसकी मृत्यु महाभारत के समय ही हो गयी थी। अभिमन्यु की पत्नी थी उत्तरा। उत्तरा के गर्भ में परीक्षित थे। उनके ऊपर अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र चलाया। उत्तरा ने भगवान से रक्षा की प्रार्थना की तो भगवान ने स्वयं उत्तरा के गर्भ में प्रविष्ट होकर उस बच्चे की रक्षा की। ध्यान में रखना, गर्भ में हम सब लोगों की रक्षा भी भगवान ही करते हैं। माँ नहीं करती। माँ को पता भी नहीं होता वहाँ क्या है। गर्भ में रक्षा करने वाले भगवान ही हैं, जब उस बच्चे (परीक्षित) का जन्म हुआ, तब पाण्डवों के शेष सभी पुत्र मर चुके थे, कोई नहीं बचा था। वंश चलाने वाला एक ही पुत्र शेष था। राजा युधिष्ठिर ने सारे ज्योतिषियों को, ब्राह्मणों को बुलवाकर कहा, ‘‘भगवान आप मुझे इस बच्चे का भविष्य बताइये, यह भी बताइये कि यह कैसा राजा होगा?’’ भागवत के अधिकारी का स्तर कितना ऊँचा होता है यही दर्शाने के लिये कथा बताई गई है। देखो, शुकदेवजी वक्ता हैं। वक्ता कितने ऊँचे स्तर के थे वह तो हमने देख लिया है। अब यहाँ पर श्रोता के बारे में शिष्य के बारे में भी देख लें कि वह कैसा है। तो उस बालक के परीक्षित और विष्णुरात ऐसे दो नाम हुए। गर्भ में उनकी रक्षा विष्णु भगवान ने की थी इसलिये उनका नाम हुआ विष्णुरात। शुकदेवजी का एक नाम है ब्रह्मरात। ब्रह्मरात माने ब्रह्म उनके लिये हमेशा प्रकट है। कभी छिपा हुआ ही नहीं है। अतः ब्रह्मरात शुकदेव जी का नाम है। और विष्णुरात परीक्षित का नाम है। जब जन्म हुआ तो परीक्षित गौर से देखते थे कि जिसने मुझे गर्भ में बचाया वह यही तो नहीं है। मैं आपको सच बताऊँ, जो भी छोटा बालक होता है, वह हमेशा ध्यान से देखता रहता है। वह देखता रहता है कि जिन्होंने गर्भ में मुझे बचाया वे ये ही तो नहीं है। इसलिये कोई भी आता है, तो बच्चा उसे देखता रहता है। और फिर मेरे जैसा संन्यासी आ जाए तो देखकर रोने लग जाता है! बोले, इसने मुझे नहीं बचाया! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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