विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
4.देवताओं द्वारा विश्वरूप का वरण
अब समय ऐसा आ गया कि इन्द्र देव को असुरों के जो गुरु हैं, उन्हीं के पास जाना पड़ा। तो वे असुरों के एक गुरु विश्वरूप के पास गए। विश्वरूप ने उन्हें नारायण कवच दिया। भागवत में इसका बड़ा ही विस्तृत वर्णन आता है। नारायण कवच धारण करके, फिर इन्द्र ने लड़ाई करनी शुरू की। यहाँ युद्ध का वर्णन आता है। बाद में जब उनकी विजय हुई तो विश्वरूप, जो असुरों के पक्ष के थे, वे आहुति देते समय एक बार देवताओं को देते तो एक बार (छिप-छिपकर) असुरों को भी दिया करते थे। इन्द्र को जब मालूम पड़ा तो उसने विश्वरूप का सिर काट डाला। अब विश्वरूप के पिता त्वष्टा को बड़ा गुस्सा आया। उन्होंने इन्द्र को मारने के लिए एक बड़ा यज्ञ किया। लेकिन मंत्र बोलने में कुछ गलती हुई। तब एक भयंकर प्राणी उसमें से निकला। उसका नाम था वृत्रासुर। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |