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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
3.श्रीराम तथा श्रीकृष्ण
भगवान के अवतार तो अनेक हुए हैं परन्तु श्री राम अवतार सबसे विलक्षण और सबसे सुन्दर हैं। कोई शिवजी का भक्त हो या श्रीकृष्ण जी का, किसी का भी भक्त बनने के पूर्व श्रीराम का भक्त होना आवश्यक है। राम भक्त हुये बिना कोई कृष्ण भक्त या शिव भक्त नहीं बन सकता। ऐसा कहने का क्या तात्पर्य है? देखिये, भगवान शिवजी तो अपने निर्गुण स्वरूप में समाधिस्थ रहते हैं और भगवान श्री कृष्ण जी के रूप में तो स्वरूपस्थ ब्रह्म ही चलता फिरता दिखाई देता है। उनकी लीला को समझना भी बड़ा कठिन है। जहाँ भगवान शिव जी ब्रह्म स्थिति को दिखाने वाले हैं, वहाँ भगवान कृष्ण रति को दिखाने वाले हैं, लीला में रमण कराने वाले हैं। अब यदि कोई बह्मस्वरूप में स्थिति चाहता हो या जीवन्मुक्ति के विलक्षण सुख का अनुभव करना चाहता हो, निरंकुश स्वातंत्र्य को प्रकट करके उसका अनुभव करना चाहता हो, तो उसे अपने मन को कितना शुद्ध करना पड़ेगा? जरा सोचो। ब्रह्म स्वरूप में स्थित होना, यह जीवन्मुक्ति का एक अंग है और दूसरा है सदा आनन्द में रहना। कुछ भी करते हुए ‘सर्वथा वर्तमानोऽपि’ सभी कर्म करते हुए भी ज्यों-के-त्यों अपने स्वरूप में ही रहना। यह रूप भगवान कृष्ण के जीवन में दीखता है। इन दोनों ही बातों को समझने के लिए हमारे मन का नितान्त शुद्ध होना अति आवश्यक है। अशुद्ध मन से कुछ भी प्राप्त करना संभव नहीं है और मन की शुद्धि केवल श्री रामचन्द्र जी के अवतार को समझकर और उनके जैसा आचरण करने से ही हो सकती है। क्योंकि ये धर्मस्वरूप भगवान हैं और धर्म को पहचाने बिना तथा धर्मानुकूल जीवन जिये बिना इस प्रकार की शुद्धि हमारे जीवन में नहीं आ सकती है। इसीलिए कहा गया है कि कोई शिवजी का भक्त हो या कृष्ण जी का भक्त, उसे पहले भगवान रामचन्द्र जी का भक्त होना ही पड़ेगा। इस बात पर गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है। देखिये, श्री रामचन्द्र जी और श्री कृष्ण जी में कोई भेद नहीं है, क्योंकि जो रामजी हैं वे ही कृष्ण जी बन कर आये। ये ज्यादा बड़े या छोटे हैं, ऐसा कहना मूर्खता का लक्षण हैं, अपराध है और पाप भी है। ऐसा कहना गलत है। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और भगवान श्री राम के जीवन में हम मनुष्यों की दृष्टि से थोड़ा भेद है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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