पंचत्रिंश (35) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: पंचत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
शल्य ने कहा- भारत! नरश्रेष्ठ! मैंने भी देवश्रेष्ठ ब्रह्मा और महादेव जी के इस अलौकिक एवं दिव्य उपाख्यान को विद्वानों के मुख से सुना है कि किस प्रकार प्रपितामह ब्रह्मा और महादेव जी का सारथि-कर्म किया था? और कैसे एक ही बाण से समस्त असुर मारे गये? भगवान ब्रह्मा उस समय जिस प्रकार महादेव जी के सारथि हुए थे, यह सारा पुरातन वृत्तान्त श्रीकृष्ण को भी विदित ही होगा। क्योंकि श्रीकृष्ण भी भूत और भविष्य को यथार्थ रूप से जानते हैं। भारत! इस विषय को अच्छी तरह जानकर ही रुद्र के सारथि ब्रह्मा जी के समान श्रीकृष्ण बने हुए हैं। यदि सूतपुत्र कर्ण किसी प्रकार कुन्तीकुमार अर्जुन को मार डालेगा तो अर्जुन को मारा गया देख श्रीकृष्ण स्वयं ही युद्ध करेंगे। उनके हाथ में शंख, चक्र और गदा होगी। वे तुम्हारी सेना को जलाकर भस्म कर देंगे। महात्मा श्रीकृष्ण कुपित होकर जब हथियार उठायेंगे, उस समय तुम्हारे पक्ष को कोई भी नरेश उनके सामने ठहर नहीं सकेगा। संजय कहते हैं- राजन! मद्रराज शल्य को ऐसी बातें करते देख आपके शत्रुदमन पुत्र महाबाहु दुर्योधन ने मन में तनिक भी दीनता न लाकर उन्हें इस प्रकार उत्तर दिया- ‘महाबाहो! तुम रणक्षेत्र में वैकर्तन कर्ण का अपमान न करो। वह सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ तथा सम्पूर्ण शास्त्रों के अर्थ का पारंगत विद्वान है। यह वही वीर है जिसकी प्रत्यंचा की अत्यन्त भयानक टंकार सुनकर पाण्डव सेना दसों दिशाओं में भागने लगती है। महाबाहो! यह तो तुमने अपनी आँखों देखा था कि किस प्रकार उस दिन रात में सैंकड़ों मायाओं का प्रयोग करने वाला मायावी घटोत्कच कर्ण के हाथ से मारा गया। इन सारे दिनों में महान भय से घिरे हुए अर्जुन किसी तरह भी कर्ण के सामने खड़े न हो सके थे। राजन! बलवान भीमसेन को भी इसने अपने धनुष की कोटि से दबाकर युद्ध के लिये प्रेरित किया था और उन्हें मूर्ख, पेटू आदि नामों से पुकारा था। मान्यवर! इसने महासमर में शूरवीर नकुल-सहदेव को भी परास्त करके किसी विशेष प्रयोजन को सामने रखकर उन दोनों को युद्ध में मार नहीं डाला। इसने वृष्णि वंश के प्रमुख वीर सात्वत शिरोमणि शूरवीर सात्यकि को समरांगण में परास्त करके उन्हें बलपूर्वक रथहीन कर दिया था। इसके सिवा धृष्टद्युम्न आदि समस्त सृंजयों को भी इसने युद्ध स्थल में हँसते-हँसते अनेक बार परास्त किया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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