श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 274

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

Prev.png

ध्यानयोग
अध्याय 6 : श्लोक-16

नात्यश्र्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।
न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन॥[1]

भावार्थ

हे अर्जुन! जो अधिक खाता है या बहुत कम खाता है, जो अधिक सोता है अथवा जो पर्याप्त नहीं सोता उसके योगी बनने की कोई सम्भावना नहीं है।

तात्पर्य

यहाँ पर योगियों के लिए भोजन तथा नींद के नियमन की संस्तुति की गई है। अधिक भोजन का अर्थ है शरीर तथा आत्मा को बनाये रखने के लिए आवश्यकता से अधिक भोजन करना। मनुष्यों में मांसाहार करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि प्रचुर मात्रा में अन्न, शाक, फल तथा दुग्ध उपलब्ध हैं। ऐसे सादे भोज्यपदार्थ भगवद्गीता के अनुसार सतोगुणी माने जाते हैं। मांसाहार तो तमोगुणियों के लिए है। अतः जो लोग मांसाहार करते हैं, मद्यपान करते हैं, धूम्रपान करते हैं और कृष्ण को भोग लगाये बिना भोजन करते हैं वे पापकर्मों का भोग करेंगे क्योंकि वे दूषित वस्तुएँ खाते हैं। भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्। जो व्यक्ति इन्द्रियसुख के लिए खाता है या अपने लिए भोजन बनाता है, किन्तु कृष्ण को भोजन अर्पित नहीं करता वह केवल पाप खाता है। जो पाप खाता है और नियत मात्र से अधिक भोजन करता है वह पूर्णयोग का पालन नहीं कर सकता। सबसे उत्तम यही है कि कृष्ण को अर्पित भोजन के अच्छिष्ट भाग को ही खाया जाये। कृष्णभावनाभावित व्यक्ति कभी भी ऐसा भोजन नहीं करता, जो इससे पूर्ण कृष्ण को अर्पित न किया गया हो। अतः केवल कृष्णभावनाभावित व्यक्ति ही योगाभ्यास में पूर्णता प्राप्त कर सकता है। न ही ऐसा व्यक्ति कभी योग का अभ्यास कर सकता है, जो कृत्रिम उपवास की अपनी विधियाँ निकाल कर भोजन नहीं करता है। कृष्णभावनाभावित व्यक्ति शास्त्रों द्वारा अनुमोदित उपवास करता है। न तो वह आवश्यकता से अधिक उपवास रखता है, न ही अधिक खाता है। इस प्रकार वह योगाभ्यास करने के लिए पूर्णतया योग्य है। जो आवश्यकता से अधिक खाता है वह सोते समय अनेक सपने देखेगा, अतः आवश्यकता से अधिक सोएगा। मनुष्य को प्रतिदिन छः घंटे से अधिक नहीं सोना चाहिए। जो व्यक्ति चौबीस घंटो में से छः घंटो से अधिक सोता है, वह अवश्य ही तमोगुणी है। तमोगुणी व्यक्ति आलसी होता है और अधिक सोता है। ऐसा व्यक्ति योग नहीं साध सकता।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. न – कभी नहीं; अति – अधिक; अश्नतः – खाने वाले का; तु – लेकिन; योगः – भगवान् से जुड़ना; अस्ति – है; न – न तो; च – भी; एकान्तम् – बिलकुल, नितान्त; अनश्नतः – भोजन न करने वाले का; न – न तो; च – भी; अति – अत्यधिक; स्वप्न-शीलस्य – सोने वाले का; जाग्रतः – अथवा रात भर जागते रहने वाले का; न – नहीं; एव – ही; च – तथा; अर्जुन – हे अर्जुन।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः