श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 771

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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उपसंहार- संन्यास की सिद्धि
अध्याय 18 : श्लोक-42


शमो दमस्तप: शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च ।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ॥42॥[1]

भावार्थ

शान्तिप्रियता, आत्मसंयम, तपस्या, पवित्रता, सहिष्णुता, सत्यनिष्ठा, ज्ञान, विज्ञान तथा धार्मिकता- ये सारे स्वाभाविक गुण हैं, जिनके द्वारा ब्राह्मण कर्म करते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शमः= शान्तिप्रयता; दमः= आत्मसंयम; तपः= तपस्या; शौचम्= पवित्रता; क्षान्तिः= सहिष्णुता; आर्जवम्= सत्यनिष्ठा; एव= निश्चय ही; च= तथा; ज्ञानम्= ज्ञान; विज्ञानम्= विज्ञान; आस्तिक्यम्= धार्मिकता; ब्रह्म= ब्राह्मण का; कर्म= कर्तव्य; स्वभाजम्= स्वभाव से उत्पन्न, स्वाभाविक।

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