श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 369

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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भगवत्प्राप्ति
अध्याय 8 : श्लोक-18-19

अव्यक्ताद्वयक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके।।[1]
भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते।
रात्र्यागमेऽवशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे।।[2]

भावार्थ

ब्रह्मा के दिन के शुभारम्भ में सारे जीव अव्यक्त अवस्था से व्यक्त होते हैं और फिर जब रात्रि आती है तो वे पुनः अव्यक्त में विलीन हो जाते हैं। जब-जब ब्रह्मा का दिन आता है तो सारे जीव प्रकट होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि होते ही वे असहायवत विलीन हो जाते हैं।

तात्पर्य

अल्पज्ञानी पुरुष, जो इस भौतिक जगत में बने रहना चाहते हैं, उच्चतर लोकों को प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु उन्हें पुनः इस धरालोक पर आना होता है। वे ब्रह्मा का दिन होने पर इस जगत के उच्चतर तथा निम्नतर लोकों में अपने कार्यों का प्रदर्शन करते हैं, किन्तु ब्रह्मा की रात्रि होते ही वे विनष्ट हो जाते हैं। दिन में उन्हें भौतिक कार्यों के लिए नाना शरीर प्राप्त होते रहते हैं, किन्तु रात्रि के होते ही उनके शरीर विष्णु के शरीर में विलीन हो जाते हैं। वे पुनः ब्रह्मा का दिन आने पर प्रकट होते हैं। भूत्वा-भूत्वा प्रलीयते– दिन के समय वे प्रकट होते हैं और रात्रि के समय पुनः विनष्ट हो जाते हैं। अन्ततोगत्वा जब ब्रह्मा का जीवन समाप्त होता है, तो उन सबका संहार हो जाता है और वे करोड़ो वर्षों तक अप्रकट रहते हैं। अन्य कल्प में ब्रह्मा का पुनर्जन्म होने पर वे पुनः प्रकट होते हैं। इस प्रकार वे भौतिक जगत के जादू से मोहित होते रहते हैं। किन्तु जो बुद्धिमान व्यक्ति कृष्णभावनामृत स्वीकार करते हैं, वे इस मनुष्य जीवन का उपयोग भगवान की भक्ति करने में तथा हरे कृष्ण मन्त्र का कीर्तन में बिताते हैं। इस प्रकार वे इस जीवन में कृष्णलोक को प्राप्त होते हैं और वहाँ पर पुनर्जन्म के चक्कर से मुक्त होकर सतत आनन्द का अनुभव करते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अव्यक्तात् – अव्यक्त से; व्यक्तयः – जीव; सर्वाः – सारे; प्रभवन्ति – प्रकट होते हैं; अहः-आगमे – दिन होने पर; रात्रि-आगमे – रात्रि आने पर; प्रलीयन्ते – विनष्ट हो जाते हैं; तत्र – उसमें; एव – निश्चय ही; अव्यक्त – अप्रकट; संज्ञके – नामक, कहे जाने वाले।
  2. भूत-ग्रामः – समस्त जीवों का समूह; सः – वही; एव – निश्चय ही; अयम् – यह; भूत्वा भूत्वा – बारम्बार जन्म लेकर; प्रलीयते – विनष्ट हो जाता है; रात्रि – रात्रि के; आगमे – आने पर; अवशः – स्वतः; पार्थ – हे पृथापुत्र; प्रभवति – प्रकट होता है; अहः – दिन; आगमे – आने पर।

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