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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
उद्योग पर्व
अध्याय : 29-31
45. प्रजागर पर्व
कथा के चलते हुए प्रवाह के बीच में कुछ देर के लिए रुककर प्रज्ञाशील ग्रन्थकार ने दो विशिष्ट पर्वों को स्थान दिया है। पहला प्रजागर पर्व है, जिसमें प्राचीन भारतीय नीति शास्त्र या जीवन के प्रज्ञा-शास्त्र का बहुत ही सुन्दर विवेचन है। विदुर वक्ता और धृतराष्ट्र श्रोता हैं। दूसरा सनत्सुजात पर्व है, जिसमें उस अध्यात्म शास्त्र का, जो उपनिषद युग की पृष्ठभूमि में विकसित हुआ था, अत्यन्त श्लाघनीय सारांश दिया गया है। प्रजागर पर्व में आठ अध्याय और पांच सौ तीस श्लोक हैं। यह प्रकरण विदुर-नीति के नाम से लोक में प्रसिद्ध है। इसे प्रजागर क्यों कहा गया, इसका हेतु इस प्रकार हैः जब संजय ने तत्काल पूरी बात न कही तो धृतराष्ट्र के निर्बल मन में किसी भारी अनर्थ की आशंका हुई। इस चिन्ता में उनकी नींद चली गई। संजय न जाने क्या संदेश लाया है, यह सोचकर वे बहुत अस्वस्थ हो गए। प्रजागर का अर्थ जागरण या निद्राक्षय है। धृतराष्ट्र ने दूत भेजकर तुरन्त विदुर को बुलवाया। विदुर स्वयं बड़े प्रज्ञाशील थे। वे धृतराष्ट्र के लगभग रात दिन के साथी थे और धृतराष्ट्र उनकी समझदारी के भक्त होकर उन्हें बहुत मानते भी थे। लिखा है कि धृतराष्ट्र से मिलने के लिए विदुर को बाधा न थी। राजा से मिलने के लिए औरों को समय नियत करना पड़ता है, पर विदुर को छूट थी कि जब चाहें, मिलें। धृतराष्ट्र विदुर के लिए कभी अकाल्य न थे, अर्थात सदा मिल लेते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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