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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
12. शान्ति पर्व
अध्याय : 168-353
अध्याय 260-263 में गो-कापिलेय संवाद के रूप में इस प्रश्न का समाधान किया गया है कि गृहस्थ धर्म और योग धर्म इन दोनों को समन्वय कैसे हो सकता है और दोनों मे कौन श्रेष्ठ है? इस विषय में कपिल और गौ का संवाद प्राचीन जान पड़ता है। उस गौ को त्वष्टा के आतिथ्य के लिए आलम्भन के उद्देश्य से नहुष ने चुना था। उसे देखकर कपिल ने एक बार इतना ही कहा- हा वेद! (जो तुम्हारे नाम पर लोग ऐसा अनाचार करते हैं)। उस समय स्यूमरश्मि नामक एक ऋषि ने उस गाय के भीतर प्रवेश करके कपिल मुनि से कहा, “अहो, यदि वेदों की प्रामाणिकता पर आपको सन्देह है, तो अन्य धर्मशास्त्रों को किस आधार पर प्रमाणभूत माना जा सकता है?” यहाँ स्पष्ट ही वेदि की हिंसा पर आक्षेप किया गया है और यह भी संदेह किया गया है कि वेद-प्रस्तावित चार आश्रमों का धर्म कहाँ तक समीचीन है? यह उस युग में बौद्धों का वेद के सम्बन्ध में विचार था, अहिंसा और हिंसा को लेकर यह प्रश्न बहुत ही जटिल और कठिन बन गया था। यह बौद्धों और भागवतों के बीच में मत-भेद का बवंडर बन गया था। उससे पिण्ड छुड़ाना भागवतों के लिए मुश्किल हो रहा था। एक ओर तो वे वैदिकी हिंसा की निन्दा नहीं कर सकते थे, दूसरी ओर अहिंसा का समर्थन करने पर बाध्य थे। कपिल बौद्ध या वेद-बाह्य दृष्टिकोण के समर्थक हैं और स्यूमरश्मि के मत में यज्ञ आवश्यक है। भागवतों ने यज्ञ के समर्थन में लम्बे-चौड़े तर्क खड़े किये। यज्ञ द्वारा प्रजापति ने विश्व बनाया। विश्व के लिए यज्ञ आवश्यक है। यज्ञ के 12 अंग थे- ओषधि, पशु, वृक्ष, लता, घी, दूध, दही, अन्नादि हविष्य, भूमि, दिशा, श्रद्धा और काल। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और यजमान मिलाकर सोलह यज्ञांग होते हैं। तथा, गार्हपत्य अग्नि को सत्रहवां यज्ञांग समझना चाहिए। इस सत्रह में हिंसा तो केवल एक यज्ञांग है। उसी को लेकर इतना बखेड़ा करना अनावश्यक है। अन्य यज्ञांगों से यज्ञ सम्पन्न किया ही जा सकता है। भागवतों का दूसरा प्रबल तर्क यह था कि पूर्वकाल से ऐसा ही होता आया है, इस कारण हम तुम्हारा नया मत स्वीकार नहीं कर सकते। यज्ञ का अनुष्ठान विश्व की स्थिति के लिए आवश्यक है। उसमें किसी के साथ द्रोह का भाव नहीं है। यज्ञ शास्त्र में वर्णित है। सम्पूर्ण यज्ञांग एक दूसरे को धारण करते हैं। यज्ञ शास्त्र के जाने बिना इन यज्ञांगों के साथ झगड़ा करना उचित नहीं केवल पशु हिंसा के आधार पर यज्ञ को अवैध मानना ठीक नहीं और इस युक्ति को यज्ञ के विपक्ष में कभी स्वीकृत नहीं किया जा सकता। विद्वान पुरुषों ने वेद और ब्राह्मण तथा उनमें कहे हुए कर्मकाण्ड को प्रमाण माना है। इन आम्नायों या आगमों को हम नहीं छोड़ सकते। वेदों के ब्राह्मण भाग से यज्ञ प्रकट हुआ है। यज्ञ के पीछे सारा जगत और जगत के पीछे सदा यज्ञ रहता है। यज्ञ प्रवृत्ति मार्ग है, आपका मत निवृत्ति-प्रधान है। किन्तु गृहस्थों के लिए प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों ही मार्ग हैं। उत्तर में कपिल ने निवृत्ति मार्ग और ज्ञानियों का समर्थन किया। ये ज्ञानी प्रज्ञावादी बौद्ध और सांख्यवादी परिव्राजक थे। किन्तु स्यूमरश्मि ने गृहस्थों का ही पक्ष लिया। यदि गृहस्थ आश्रम न हो तो संन्यास, वैराग्य और मुण्डकों के सब धर्म विफल हो जायं। जैसे समस्त प्राणी माता की गोद का सहारा पाकर ही जीवन धारण करते हैं, उसी प्रकार गृहस्थ आश्रम का आश्रय लेकर ही दूसरे आश्रम टिके हुए हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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