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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
12. शान्ति पर्व
अध्याय : 67
युधिष्ठिर ने प्रश्न का मुंह खोलते हुए फिर पूछा, “हे पितामह, आपने चार आश्रम और चार वर्ण कहे, किन्तु राष्ट्र का मुख्य कर्तव्य क्या है, यह भी बताईये” भीष्म ने कहना प्रारम्भ किया, “राष्ट्र के लिए मुख्य कार्य यह है कि अपने यहाँ किसी व्यक्ति को राजा के पद पर अभिषिक्त करे, क्योंकि अराजक राष्ट्र में धर्म नहीं ठहरता। वहाँ लोग एक दूसरे को हड़प जाते हैं। अराजक राष्ट्र को धिक्कार है। जो राजा का वरण करता है वह इन्द्र का ही वरण करता है, ऐसी श्रुति है। देवों में जो इन्द्र है वही मनुष्यों में राजा है। अराजक राष्ट्र में नहीं बसना चाहिये‚ यह वेदों का मत है। अराजक राष्ट्र में अग्नि द्रव्य को देवों के पास नहीं ले जाती। अराजक राष्ट्र से अधिक पाप अन्य कुछ नहीं हैं। “जो बिना गरम किये झुक जाता है, उसे तपाना नहीं पड़ता है। जो गाय दुहने में सहेज होती है, उसे कोई कष्ट नहीं देता। जो काष्ठ स्वयं झुका हुआ है, उसे नवाना नहीं पड़ता। इन उपमाओं को देखकर बलवान के सामने स्वयं झुक जाना चाहिए। जो बलवानफ के सामने झुकता है, मानो इन्द्र के सामने झुकता है। अतः भूति चाहने वाले को सर्वप्रथम राजा का वरण करना चाहिए। अराजक राष्ट्र में रहने वाले के लिए धन और स्त्री का कोई अर्थ नहीं। अराजक राष्ट्र में दूसरे के धन को हरने वाला बहुत प्रसन्न होता है, पर जब उसके धन को भी दूसरे हरते हैं तब उसे राजा की आवश्यकता का अनुभव होता है। अराजक अवस्था में पापी भी सुखी नहीं होते, क्योंकि एक के धन को दो और दो की संपत्ति को बहुत-से हर लेते हैं। अराजक राष्ट्र में अदास को दास बना लेते हैं और स्त्रियों को हर ले जाते हैं, यह देखकर देवों ने प्रजापालन रूप राजधर्म की व्यवस्था की। हममें जो वाणी में क्रूर हो, दण्ड में कठोर हो जो पारदारिक हो, जो हमारे धन का हरण करे, उसका त्याग कर देना चाहिए- इस प्रकार सब वर्णों को आश्वस्त करने के लिए उन्होंने ‘समय’ स्थिर किया। तब भी वे दुःखी होकर प्रजापति के पास गये और कहने लगे- ‘भगवन, बिना राजा (ईश्वर) के हम नष्ट हो रहे हैं। हमें राजा (ईश्वर) दीजिये, हम मिलकर जिसकी पूजा करें ओर जो हमारा पालन करे।” ब्रह्मा ने मनु को उनका राजा बनाया, किन्तु मनु ने इसे पसन्द नहीं किया। उसने कहा, ‘मैं इस क्रूर कर्म से डरता हूँ। राज्य दुष्कर है, विशेषकर मिथ्याचरण करने वाले मनुष्यों में यह और भी कठिन है।’ प्रजाओं ने मनु से कहाः“आप डरें नहीं, पाप तो करने वाले को लगेगा। और फिर हम लोग कोशवृद्धि के लिए आप को पचास पशुओं में से एक पशु, सुवर्ण की तोल का पचासवां भाग और धान्य की उपज का दसवां भाग देंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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