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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
11 स्त्री पर्व
अध्याय : 1-8
ग्यारहवें स्त्री पर्व में तीन उप पर्व हैं। पहले में मृत व्यक्तियों के लिए जलाञ्जलि का उल्लेख है। इसमें मुख्यतः धृतराष्ट्र के शोक का वर्णन किया गया है। विदुर और व्यास ने धृतराष्ट्र को ऐसी स्थिति में संसार की अनित्यता बताकर धीरज दिया। पाण्डव भी धृतराष्ट्र से मिलने गये। धृतराष्ट्र ने लोहे के भीम को चूर-चूर करके अपना क्रोध प्रकट किया। तब कृष्ण ने उन्हें फटकारते हुए कहा, “हे राजन! अब तुम इस प्रकार क्रोध क्यों करते हो? तुमने क्यों नही अपने पुत्रों के अन्याय को रोका?” इस पर धृतराष्ट्र का क्रोध कुछ शान्त हुआ। उधर गान्धारी पाण्डवों को शाप देने पर उतारू हो गई। व्यास ने उसे समझाया। भीमसेन और युधिष्ठिर ने भी गान्धारी से क्षमा मांगी। तब पाण्डव कुन्ती और द्रौपदी से मिले। द्रौपदी को भी कम शोक न था, उसे गान्धारी ने सांत्वना दी। 67. गान्धारी का विलापस्त्री पर्व में मुख्यतः गान्धारी के शोक पूर्ण विलाप का वर्णन है। व्यास जी ने गान्धारी को दिव्यदृष्टि का वरदान दिया और उसे युद्ध में मारे गये योद्धा दिखाई पड़ने लगे। तब उसने कृष्ण के सामने बहुत प्रकार से शोकातुर होकर विलाप किया। इसके अन्त में युधिष्ठिर के कहने से सबने अपने मरे हुए सम्बन्धियों को जलाञ्जलि देकर श्राद्ध किया। ‘भारत-सावित्री’ के इस खण्ड में जहाँ एक ओर सनत्सुजात पर्व और गीता का आध्यात्मिक गंगाजल है, वहीं दूसरी ओर भीषण युद्ध का दारुण वर्णन भी है। प्राचीन भारत में जो नियतिवादी दर्शन था और धृतराष्ट्र जिसके अनुयायी थे, उसे सामने रखते हुए व्यासजी ने धृतराष्ट्र से कहाः न च दैव कृतः मार्गः शक्यो भूतेन केनाचित्। ‘दैव का निश्चित किया हुआ जो मार्ग है, उसे कोई व्यक्ति टाल नहीं सकता, चाहे वह कैसा भी दीर्घ प्रयत्न करे।’ ‘भारत-सावित्री’ के तीसरे खण्ड में शान्ति और अनुशासन आदि महान पर्वों की व्याख्या दी गई है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ स्त्री पर्व 8। 19
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