विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
6. भीष्म पर्व
अध्याय : 8-9
यहाँ से महाभारत के युद्ध की कथा आरम्भ होती है। भीष्म, द्रोण, कर्ण और शल्य नाम के चार पर्वों में असली लड़ाई का वर्णन है। पूना संस्करण के अनुसार इनमें कुल मिलाकर 415 अध्याय और 22,913 श्लोक हैं। मोटे तौर पर महाभारत की कुल ग्रन्थ-संख्या का यह लगभग चौथाई अंश होता है। इन पर्वों की एक विशेषता यह है कि इनमें बाहर की सामग्री कम-से-कम आने पाई है। ‘भीष्मपर्व’ का आरम्भिक भाग इसका अपवाद है। इस पर्व के कुल 117 अध्यायों में पहले 40 अध्याय विषय की महत्ता की दृष्टि से प्रसिद्ध है। उनमें से पहला है ‘जम्बूखंड विनिर्माण पर्व’।[1] इसे ‘भूमिपर्व’ भी कहते हैं। इसमें प्राचीन भुवन कोष का सविस्तार वर्णन है। दूसरा ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ पर्व है, जिसमें प्राचीन भारतीय अध्यात्म और दर्शन का निचोड़ भर दिया गया है और जो विचारों की गहराई, भाषा के प्रवाह और अनुभव की तीव्रता के कारण न केवल भारतवर्ष, बल्कि विश्व के साहित्य में अत्यन्त सम्मानित पद को प्राप्त हुआ है। ‘भगवद्गीता’ के बाद तो शस्त्र-संपात शुरु हो जाता है और भीष्म ने दस दिन तक जो घोर युद्ध किया, उसका वर्णन पर्व के अन्त तक चलता है। 53. भुवनकोश पर्वइस पर्व में प्राचीन भारतीय भूगोल की विस्तृत सामग्री पाई जाती है। इसे हम सुविधा के लिए ‘भुवनकोश’ कह सकते हैं, जो नाम कई पुराणों में आता है। मत्स्य[2], वायु[3], ब्रह्माण्ड[4], वामन[5] और मार्कण्डेय[6] नामक पुराणों में भुवनकोश की सामग्री आई है। इन अध्यायों में विषय की दृष्टि से सामग्री के दो भाग हैं। एक तो भारत के बाहर के जो वर्ष और पर्वत थे, उनका वर्णन कहीं कम, कहीं विस्तार से किया गया है। जैसे भीष्म पर्व में ही शाक द्वीप का वर्णन बहुत विशद है। इसका कारण हो सकता है कि यह सामग्री शक-कुषाण-युग के प्रभाव से इस प्रकरण में आई हो। इस सामग्री का दूसरा अंश ठेठ भारतवर्ष के भूगोल से सम्बन्धित है, जिसमें पर्वत, नदी और जनपदों की विस्तृत सूचियां संग्रहीत हैं। भारतीय भूगोल के विषय में इस प्रकार की दो सूचियां मिलती हैं। एक पुरानी और दूसरी नई। पुरानी सूची ही वस्तुतः पुराणों का भुवन कोश था। अनुमान होता है कि इस देश के नदी, जनपदों के नामों का संग्रह जनपद युग के अन्त में 500 ई. पूर्व के लगभग किया गया था। उसी समय पणिनि ने भी पामीर पठार के कम्बोज जनपद से लेकर असम प्रदेश के सूरमस जनपद (सूरमा घाटी) तक के जनपदीय भूगोल का अष्टाध्यायी में उल्लेख किया है। बाद में गुप्त युग के लगभग अनेक नई जातियां शक, यवन, तुषार आदि इस देश में आ गई थीं, तब बदली हुई परिस्थिति के अनुसार भौगोलिक नामों की एक नई सूची बनाई गई, जिसे कूर्म संस्थान कहा गया। यह सूची बृहत् संहिता में मिलती है। मार्कण्डेय पुराण में पुरानी और नई दोनों सूचियां आगे-पीछे सुरक्षित है।[7] भीष्म-पर्व की नदी, जनपद सूची[8] पुरानी सूची का ही अवान्तर रूप है, कूर्म संस्थान से इसका सम्बन्ध नहीं है। पाठक देखेंगे कि इसका एक महत्त्वपूर्ण कारण है, जिसे स्पष्ट समझ लेने पर ही पृथ्वी के भूगोल की कुछ संगति लग सकेगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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