विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 70-88
5. राजा ययाति का उपाख्यान
आदि-पर्व के संभव-पर्व में शकुन्तलोपाख्यान के बाद उन्नीस अध्यायों का ययात्युपाख्यान नामक बड़ा उपाख्यान है। इसके दो भाग हैं, पूर्व यायात और उत्तर यायात। ययाति भी कौरवों के पूर्व-पुरुष थे। अतएव आरंभ में उनके चरित्र का सविस्तृत वर्णन करना आवश्यक समझा गया। चन्द्रवंश में नहुष के पुत्र ययाति हुए। ययाति ने असुर गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और असुर राजा वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा से विवाह किया। देवयानी के गर्भ से यदु और तुर्वसु दो पुत्र उत्पन्न हुए। इसी प्रकार शर्मिष्ठा के गर्भ से द्रुह्यु, अनु और पुरु नामक तीन पुत्र उत्पन्न हुए। उशना शुक्र के शाप से ययाति अकाल में ही जराजीर्ण हो गए। उन्होंने अपने पुत्रों की युवास्था को लेकर अपनी जरावस्था का परिवर्तन करना चाहा। यदु, तुर्वसु, द्रुह्यु और अनु इन चार बड़े पुत्रों में से कोई इसके लिए तैयार नहीं हुआ, किन्तु सबसे छोटे पुरु ने पिता की आज्ञा स्वीकार कर ली और अपना यौवन देकर ययाति का बुढ़ापा स्वयं ले लिया। यौवन की शक्ति से पुनः युवा बनकर ययाति ने अपनी दो पत्नियों एवं विश्वाची नामक अप्सरा के साथ चैत्ररथ वन में दीर्घ काल तक सुखों का उपभोग किया। अन्त में उस जीवन की निस्सारता का देखकर उससे भी विरक्त हो गए। उन्होंने पुरु को उसका यौवन देकर उसे अपने राज्य का उत्तराधिकारी नियुक्त किया और स्वयं स्वर्ग को चले गए। इतनी कथा ययाति-उपाख्यान के पूर्व भाग में है। इसे ही व्याकरण साहित्य और महाभारत में पूर्व-यायात कहा गया है। इसके बाद ययाति का स्वर्ग में जाना, वहाँ इन्द्र से वार्तालाप, अपने पुण्य के विषय में दर्पोक्ति, उसके कारण स्वर्ग से पतन एवं पुनः स्वर्ग-आरोहण की कथा उपाख्यान के अंतिम भाग में है, जिसे उत्तर-यायात कहते थे। किसी समय यह उपाख्यान महाभारत से स्वतंत्र रूप में प्रचलित था। इस उपाख्यान के अन्त में भी फलश्रुति का श्लोक[1] पाया जाता है, जो इस बात का निश्चित प्रमाण है कि यह प्रकरण बाहर से तैरता हुआ मूल ग्रन्थ में स्थान पा गया। ययाति-उपाख्यान के इस मूल पाठ को प्राचीन आख्यानविदों ने अपनी साहित्यिक प्रतिभा से अत्यंत प्रतिमंडित किया। इस उपाख्यान के आरम्भ में राजाओं की वंशावली भी दी हुई है। प्रचेता के पुत्र दक्ष ने अपनी पचास कन्याओं में से तेरह का विवाह कश्यप मारीच से किया। उनमें दाक्षायणी के गर्भ से विवश्वान‚ विवश्वान से वैवस्वत यम, यम से मार्तण्ड और मार्तण्ड से मनु का जन्म हुआ। मनु से मानव-वंश लोक में फैला। वैवस्त मनु के नौ पुत्र और इला नाम की कन्या थी। इला से पुरुरवा का जन्म हुआ। ऐल पुरुरवा और उसकी पत्नी उर्वशी के ज्येष्ठ पुत्र का नाम आयु था। आयु से नहुष का जन्म हुआ जिसने धर्म से पृथ्वी का पालन किया और अन्त में इन्द्र-पद भोगकर ऋषियों का अपमान करने से वह अधोगति को प्राप्त हुआ। इसी नहुष का पुत्र ययाति था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदि. 88।25
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